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अलसी के आश्चर्यजनक फायदे

अलसी

एक अनाज है जो खेतों में बोया जाता है। इसके फूल नीले और फल हरे रंग के होते हैं। उन्ही के अंदर यह लाल रंग की चिपटी दाना वाली होती है। गुण : अलसी मधुर, तीखी, गुरू (भारी), स्निग्ध (चिकनी), गर्म प्रकृति, पाक में तीखी, वात नाशक, कफ़-पित्त वर्धक, आंखों के रोग, व्रण शोथ (जख्मों की सूजन) और वीर्य के दोषों का नाश करती है। अलसी का तेल मधु, वात नाशक, कुछ कसैला, स्निग्ध, उष्ण, कफ़ और खांसी नाशक, पाक में चरपरा होता है।

विभिन्न रोगों में उपयोगी : 

1. वीर्यवर्द्धक (धातु को बढ़ाने वाला) : अलसी का चूर्ण बराबर की मात्रा में मिश्री मिलाकर नियमित रूप से दूध के साथ कुछ हफ्ते तक पीने से वीर्य बढ़ता है।

2.अनिद्रा (नींद का न आना) : अलसी तथा अरंड का शुद्ध तेल बराबर की मात्रा में मिलाकर कांसे की थाली में कांसे के ही बर्तन से ही खूब घोंटकर आंख में सुरमे की तरह लगायें। इससे नींद अच्छी आती है।

3. मुंह के छाले : अलसी का तेल छालों पर दिन में 2-3 बार लगाने से छालों में आराम होगा।


4. हृदय की निर्बलता (कमजोरी) : अलसी के पत्ते और सूखे धनिये का काढ़ा बनाकर पीने से हृदय की दुर्बलता मिट जाती है। के साथ खाने से दिल की कमजोरी मिट जाती है।

5. फोड़ा-फुंसी : अलसी के बीज तथा उसके एक चौथाई मात्रा में सरसों को एक साथ लेकर पीस लें। फिर लेप बनाकर लगाएं। 2-3 बार के लेप से फोड़ा बैठ जाएगा या पककर फूट जाएगा। अलसी को पानी में पीसकर उसमें थोड़ा जौ का सत्तू मिलाकर खट्टे दही के साथ फोड़े पर लेप करने से फोड़ा पक जाता है। वात प्रधान फोड़े में अगर जलन और दर्द हो तो तिल और अलसी को भूनकर गाय के दूध में उबालकर, ठंडा होने पर उसी दूध में उन्हें पीसकर फोड़े पर लेप करने से लाभ होता है। अगर फोड़े को पकाकर उसका मवाद निकालना हो तो अलसी की पुल्टिस (पोटली) में 2 चुटकी हल्दी मिलाकर फोड़े पर बांध दें।

6. कब्ज : रात्रि में सोते समय 1 से 2 चम्मच अलसी के बीज ताजा पानी से निगल लें। इससे आंतों की खुश्की दूर होकर मल साफ होगा। अलसी का तेल 1 चम्मच की मात्रा में सोते समय पीने से यही लाभ मिलेगा। अलसी के पत्तों की सब्जी बनाकर खाने से पेट की गैस मिटती है।

7. आग से जलने पर : चूने के निथारे हुऐ पानी में अलसी के तेल को फेंटकर जले हुए भाग पर लगाने से जलन और दर्द में आराम मिलता है और फफोले भी नहीं पड़ते। यदि घाव पूर्व में हो चुके हों तो शीघ्र ही ठीक हो जाते हैं। शुद्ध अलसी तेल और चूने का निथरा हुआ पानी बराबर मात्रा में एकत्रकर अच्छी प्रकार घोट लें। यह सफेद मलहम जैसा हो जाता है। अंग्रेजी में इसे कारोन आयल कहते है। इसको जले स्थान पर लगाने से शीघ्र ही घाव की पीड़ा दूर हो जाती है और 1 या 2 बार लेप करते रहने से घाव शीघ्र ही ठीक हो जाता है।

8. पीठ, कमर का दर्द : सोंठ का चूर्ण अलसी के तेल में गर्म करके पीठ, कमर की मालिश करने से दर्द की शिकायत दूर हो जाती है।

9. कान का दर्द : अलसी के बीजों को प्याज के रस में पकाकर छान लें। इसकी 2-3 बूंदे कान में टपकाएं। इससे कान का दर्द एवं कान की सूजन दूर हो जाएगी। मूली के पत्तों को पीसकर उसका रस निकाल लें। इसके 50 मिलीलीटर रस को 150 मिलीलीटर तिल के तेल में काफी देर तक पका लें। पकने पर रस पूरी तरह से जल जाये तो उस तेल को कपड़े में छानकर शीशी में भरकर रख लें। कान में दर्द होने पर उस तेल को गुनगुना करके कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।

10. कान में सूजन और गांठ : अलसी को प्याज के रस में डालकर अच्छी तरह से पका लें। इस रस को कान में डालने से कान के अंदर की सूजन दूर हो जाती है।

11. कान के रोग : कान का दर्द होने पर कान में अलसी का तेल डालने से आराम आता है।

12. स्तनों में दूध की वृद्धि : अलसी के बीज 1-1 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम पानी के साथ निगलने से प्रसूता के स्तनों में दूध की वृद्धि होती है।

13. शारीरिक दुर्बलता (कमजोरी) : 1 गिलास दूध के साथ सुबह-शाम 1-1 चम्मच अलसी के बीजों का सेवन करने से शारीरिक दुर्बलता दूर होकर पुष्टता आती है।

14. पेशाब में जलन : अलसी के बीजों का काढ़ा 1-1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार पीने से मूत्रनली की जलन और मूत्र सम्बंधी कष्ट दूर होते हैं।

15. कामोद्वीपन (संभोग शक्ति बढ़ाने) हेतु : 50 ग्राम अलसी के बीजों में 10 ग्राम कालीमिर्च मिलाकर पीस लें। इस चूर्ण में से एक-एक चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करें।

16. सिर दर्द : इसके बीजों को शीतल पानी में पीसकर लेप करने से सूजन के कारण सिर का दर्द, मस्तक पीड़ा तथा सिर के घावों में लाभ होता है।

17. आंखों में जलन : अलसी बीजों का लुआब आंखों में टपकाने से आंखों की जलन और लालिमा में लाभ होता है।

18. वात एवं कफ से उत्पन्न विकार : तवे पर भली-भान्ति भुनी हुई 50 ग्राम अलसी का चूर्ण, 10 ग्राम मिर्च का चूर्ण शहद के साथ घोंटकर 3-6 ग्राम तक की गोलियां बना लें। बच्चों को 3 ग्राम की तथा बड़ों को 6 ग्राम की गोलियां सुबह सेवन कराने से वात कफ के कारण उत्पन्न विकारों में लाभ होता है। इसके सेवन के एक घंटे तक पानी न पीयें।

19. प्लीहा-शोथ (तिल्ली में सूजन का आना) : भुनी हुई अलसी लगभग 3 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ लेने से प्लीहा की सूजन में लाभ होता है।

20. सुजाक (गिनोरिया रोग) : अलसी 50 ग्राम, मुलेठी 3 ग्राम, दोनों को दरदरा कूटकर 375 मिलीलीटर पानी के साथ मिट्टी के बर्तन में हल्की आंच में पकायें। जब 50 मिलीलीटर पानी शेष रह जाये तो छानकर 2 ग्राम कलमी शोरा मिलाकर 2 घंटे के अंतर से 20-20 ग्राम पिलाने से मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट होना) में बहुत आराम मिलता है। अधिक मात्रा में बनाकर 10-15 दिन तक ले सकते हैं। अलसी के तेल की 4-6 बूंदे मूत्रेन्द्रिय के छिद्र में डालने से सुजाक पूयमेह में लाभ होता है। अलसी और मुलेठी को एक समान मात्रा में लेकर कूट लें। इस मिश्रण का 40-50 ग्राम चूर्ण मिट्टी के बर्तन में डालकर उसमें 1 लीटर उबलता पानी डालकर ढक लें। 1 घंटे बाद छानकर इसमें 25 से 30 ग्राम तक कलमी शोरा मिलाकर बोतल में रख लें। 3 घंटे के अंतर से 25 से 30 मिलीलीटर तक इस पानी का सेवन करने से 24 घंटे में ही पेशाब की जलन, पेशाब का रुक-रुककर आना, पेशाब में खून आना, मवाद आदि बहना, सुरसुराहट होना आदि शिकायतें दूर हो जाती हैं। अलसी 10 ग्राम और मुलेठी 6 ग्राम, दोनों को खूब कुचलकर लगभग 1 लीटर पानी में मिलाकर तब तक गर्म करते रहें जब तक कि उसका आठवां हिस्सा शेष न बचे। इसे 3 घंटे के अंतर से लगभग 25 मिलीलीटर काढ़ा में 10 ग्राम मिश्री मिलाकर सेवन करने से जलन तत्काल खत्म होकर मूत्र साफ होने लगता है।

21. (पोटली) बनाने में : अलसी की पुल्टिस सब पुल्टिसों में उत्तम है। 40 ग्राम कुटी हुई अलसी, 100 मिलीलीटर उबलते हुए पानी में डालकर धीरे-धीरे मिलायें। यह पुल्टिस बहुत मोटी नहीं होनी चाहिए। इसे लगाते समय इसके निचले भाग पर तेल चुपड़कर लगाना चाहिए। इसके प्रयोग से सूजन व पीड़ा दूर होती है।

22. गठिया (जोड़ों) का दर्द : अलसी के बीजों को ईसबगोल के साथ पीसकर लगाने से संधि शूल में लाभ होता है। अलसी के तेल की पुल्टिस गठिया सूजन पर लगाने से लाभ होता है।

23. कमर दर्द : अलसी के तेल को गर्म कर इसमें शुंठी का चूर्ण मिलाकर मालिश करने से कमर का दर्द दूर होता है।

24. वीर्य की पुष्टि : कालीमिर्च और शहद के साथ तीसी का सेवन कामोदी्पक तथा वीर्य को गाढ़ा करने वाला होता है।

25. फेफड़ों की सूजन : अलसी की पोटली को बनाकर सीने की सिंकाई करने से फेफड़ों की सूजन के दर्द में बहुत अधिक लाभ मिलता है।

26. सीने का दर्द : सीने के दर्द में अलसी और इम्पद पीसकर दुगुने शहद में मिलाकर अवलेह (चटनी) सा बना लें। यह चटनी प्रतिदिन 10 ग्राम तक चाटना चाहिए।

27. बालों का झड़ना (गंजेपन का रोग) : अलसी के तेल में बरगद (वटवृक्ष) के पत्तों को जला लें और इसे पीस और छानकर रख लें। इस तेल को सुबह शाम सिर में लगायें। इसी तरह इसे लगाते रहने से सिर पर फिर से बालों का उगना शुरू हो जाता है।

28. बंद गांठ आदि : अलसी के चूर्ण को दूध व पानी में मिलाकर उसमें थोड़ा हल्दी का चूर्ण डालकर खूब पका लें और जितना सहन हो सके, गर्म-गर्म ही ग्रंथि व्रणों पर इस पुल्टिस का गाढ़ा लेपकर ऊपर से पान का पत्ता रखकर बांधने से गांठ पककर फूट जाती है तथा जलन, टीस, पीड़ा आदि दूर होती है। शरीर के अंदर के फोड़े भी इस उपाय से ऊपर को उभरकर फूट जाते हैं किन्तु आंतरिक फोड़े पर यह पुल्टिस कई दिनों तक लगातार बांधनी पड़ती है।

29.बालरोग : बच्चे की छाती पर अलसी का लेप करने से बच्चे को सर्दी नहलगती है।

30. हाथ-पैरों का फटना : 50 मिलीलीटर अलसी का तेल गर्म करके इसमें 5 ग्राम देशी मोम और ढाई ग्राम कपूर डालकर फटे हुए हाथ और पैरों पर लगाने से आराम आता है।

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