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कब्ज का परमानेंट इलाज

कब्ज आज के समय का एक साधारण रोग है। आज बहुत से लोग कब्ज रोग से परेशान रहते हैं। कब्ज रोग व्यक्ति के स्वयं के खान-पान में असावधानी रखने का ही परिणाम है। कब्ज उत्पन्न होने का मुख्य कारण अधिक मिर्च-मसाले वाला भोजन करना, कब्ज बनाने वाले पदार्थों का सेवन करना, भोजन करने के बाद अधिक देर तक बैठना, तेल व चिकनाई वाले पदार्थों का अधिक सेवन करना आदि है। शारीरिक श्रम न करने से मल का त्याग अल्प मात्रा में तथा अनियमित होता है। कभीकभी अत्यधिक कुंथन करने अथवा घण्टों शौच के लिए बैठने पर थोड़ा बहुत बाहर आता है। किसी-किसी को तो कई-कई दिनों तक मल विसर्जन ही नहीं होता है।


यदि कब्ज का इलाज जल्दी से न कराया जाए तो यह फैलकर अन्य रोग उत्पन्न करने का कारण बन सकता है। जब कब्ज का रोग काफ़ी बिगड़ जाता है तो मनुष्य के मलद्वार पर दरारें तक पड़ जाती है और घाव बन जाते है। यदि इस रोग का इलाज जल्दी नहीं कराया गया तो यह रोग आगे चल कर बवासीर, मधुमेह तथा मिर्गी जैसे रोग को जन्म दे सकता हैं।
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कब्ज रोग का लक्षण

रोगी को शौच साफ़ नहीं होता है, मल सूखा और कम मात्रा में निकलता है। मल कुंथन करने या घण्टों बैठे रहने पर निकलता है।

कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को रोजाना मलत्याग नहीं होता है। कब्ज रोग से पीड़ित रोगी जब मल का त्याग करता है तो उसे बहुत अधिक परेशानी होती है। कभी-कभी मल में गांठे बनने लगती है। जब रोगी मलत्याग कर लेता है तो उसे थोड़ा हल्कापन महसूस होता है।

कब्ज रोग से पीड़ित रोगी के पेट में गैस अधिक बनती है। पीड़ित रोगी जब गैस छोड़ता है तो उसमें बहुत तेज बदबू आती है।

सिर तथा कमर में दर्द रहता है, शरीर में आलस्य एवं सुस्ती, चिड़चिड़ापन तथा मानसिक तनाव सम्बन्धी लक्षण भी मिलते हैं। बहुत दिनों तक मलावरोध की शिकायत रहने से रोगी को बवासीर इत्यादि रोग भी हो जाता हैं।

कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को कई प्रकार के और भी रोग हो जाते हैं जैसे – पेट में सूजन हो जाना, मुंहासे निकलना, मुंह के छाले, अम्लता, गठिया, आंखों का मोतियाबिन्द तथा उच्च रक्तचाप आदि।


व्यवस्थाग्रस्त बीमारी — आंत्रिक नली की तंत्रिकाओं की कुप्रणाली, पेशियों की ख़राबी, इंडोक्राइन विसंगतियों तथा विद्युत अपघट्य की असामान्यतायें आदि उत्पन्न होकर आंतों में कब्ज बनाते हैं।


मनुष्य की पाचन क्रिया मन्द पड़ना, कम मात्रा में मल आना, सुबह के समय में मल करने में आलस्य करना, कम मात्रा में भोजन करने से मल न बनना, भूख न लगना आदि कारणों से यह रोग मनुष्य को हो जाता है।
मल तथा पेशाब के वेग को रोकने, व्यायाम तथा शारीरिक श्रम न करने के कारण, घर में बैठे रहना, शैयया पर बहुत समय तक विश्राम करना, शरीर में ख़ून की कमी तथा अधिक सोने के कारण भी कब्ज रोग हो जाता है।

कब्‍ज के उपचार के घरेलू उपाय –

त्रिफला

कब्‍ज के लिए त्रिफला बहुत ही अच्‍छा घरेलू उपचार है। त्रिफला शब्द का शाब्दिक अर्थ है “तीन फल”। त्रिफला तीन चीजों यानी आंवला, बहेडा और हरड़ को समान मात्रा में मिलाकर बनता है। 20 ग्राम त्रिफला रात को एक लिटर पानी में भिगोकर रख दीजिए। सुबह उठने के बाद त्रिफला को छानकर उस पानी को पी लीजिए। इससे कुछ ही दिनों में कब्‍ज की शिकायत दूर हो जाएगी। या त्रिफला चूर्ण एक चम्मच के साथ दूध अथवा गर्म पानी में लेने से कब्ज दूर हो जाता है।

किशमिश

किशमिश में कब्ज निवारण गुण होते हैं। सूखे अंगूर याने किशमिश पानी में 3 घन्टे भिगों दें फिर इसके बाद किशमिश को पानी से निकालकर खा लीजिए। इसे खाने से आंतों को ताकत मिलती है और दस्त आसानी से आती है। इससे कब्‍ज की शिकायत दूर होती है। 

शहद


कब्‍ज के लिए शहद बहुत फायदेमंद है। रात को सोने से पहले एक चम्‍मच शहद को एक गिलास पानी के साथ मिलाकर नियमित रूप से पीने से कब्‍ज दूर हो जाता है। 

मुनक्‍का

मुनक्‍का में कब्‍ज नष्‍ट करने के तत्‍व मौजूद होते हैं। 6-7 मुनक्‍का रोज रात को सोने से पहले खाने से कब्‍ज समाप्‍त होती है। इसके अलावा सुबह उठने के बाद बिना कुछ खाए हुए, 4-5 दाने काजू के और 4-5 दाने मुनक्‍का के साथ खाइए, इससे कब्‍ज की शिकायत समाप्‍त होगी। 

अजवायन

अजवायन 10 ग्राम, त्रिफला 10 ग्राम और सेंधानमक 10 ग्राम को बराबर मात्रा में लेकर कूटकर चूर्ण बना लें। रोजाना 3 से 5 ग्राम इस चूर्ण को हल्के गर्म पानी के साथ सेवन करने से काफी पुरानी कब्ज समाप्त हो जाती है। इसके अलावा सुबह उठने के बाद नींबू के रस को काला नमक मिलाकर पानी के साथ सेवन कीजिए। इससे पेट साफ होगा। 

इसबगोल

इसबगोल की भूसी कब्‍ज के लिए रामबाण दवा है। इसके नियमित सेवन से कब्‍ज की समस्‍या जड़ से दूर हो जाती है। इसके लिए आप दूध या पानी के साथ रात में सोते वक्‍त इसाबेल की भूसी लेने से कब्‍ज समाप्‍त होता है। 

कब्ज रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार

कब्ज रोग का उपचार करने के लिए कभी भी दस्त लाने वाली औषधि का सेवन नहीं करना चाहिए बल्कि कब्ज रोग होने के कारणों को दूर करना चाहिए और फिर प्राकृतिक चिकित्सा से इसका उपचार कराना चाहिए।


कब्ज रोग से बचने के लिए जब व्यक्ति को भूख लगे तभी खाना खाना चाहिए। कब्ज के रोग को ठीक करने के लिए चोकर सहित आटे की रोटी तथा हरी पत्तेदार सब्जियां चबा-चबाकर खानी चाहिए। रेशे वाली (उच्च सेलूलोज) जैसे भूसी, फल, शाक इत्यादि का नियमित प्रयोग करें। प्रतिदिन कम से कम आठ दस गिलास पानी पीयें। अधिक से अधिक बिना पका हुआ भोजन करना चाहिए। अंकुरित अन्न का अधिक सेवन करने से रोगी व्यक्ति को बहुत लाभ मिलता है। गेहूं का रस अधिक मात्रा में पीने से कब्ज से पीड़ित रोगी का रोग बहुत जल्दी ठीक हो जाता है। कब्ज न बनने देने के लिए भोजन को अच्छी तरह से चबाकर खाएं तथा ऐसा भोजन करे, जिसे पचाने में आसानी हो। रोगी व्यक्ति को मैदा, बेसन, तली-भुनी तथा मिर्च मसालेन्दार चीजों आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। कोष्ठबद्धता के रोगी को कम चिकनाई वाले आहार जैसे गाय का दूध, पनीर, सूखा फुल्का लेना चाहिए।

रोगी व्यक्ति को अधिक से अधिक फलों का सेवन करना चाहिए ये फल इस प्रकार है- पपीता, संतरा, मोसम्मी, खजूर, नारियल, अमरूद, अंगूर, सेब, खीरा, गाजर, चुकन्दर, बेल, अखरोट, अंजीर आदि। नींबू पानी, नारियल पानी, फल तथा सब्जियों का रस पीने से कब्ज से पीड़ित रोगी को बहुत फ़ायदा मिलता है। कच्चे पालक का रस प्रतिदिन सुबह तथा शाम पीने से कब्ज रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है। नींबू का रस गर्म पानी में मिलाकर रात के समय पीने से शौच साफ़ आती है। भोजन में दाल की अपेक्षा सब्जी, बथुआ, पालक आदि शाक का अधिक से अधिक सेवन करना चाहिए। उबली हुई गाजर तथा पके हुए अमरुद का सेवन सवोर्त्तम होता है।

रोगी व्यक्ति को रात के समय में 25 ग्राम किशमिश को पानी में भिगोने के लिए रख देना चाहिए। रोजाना सुबह के समय इस किशमिश को खाने से पुराने से पुराना कब्ज रोग ठीक हो जाता है। कब्ज से पीड़ित रोगी को सुबह तथा शाम 10-12 मुनक्का खाने से बहुत लाभ होता है।
कब्ज के रोग को ठीक करने के लिए त्रिफला चूर्ण को प्रतिदिन सेवन करना चाहिए।
शौच लगने पर शौच न जाने अथवा शौच के वेग को रोकने से भी कब्ज बनती है। अधिक काम करने तथा मानसिक थकान के कारण भी कब्ज बनता है।
ऐसे रोगी जिनका मेदा बहुत सख्त होता है, उन्हें शौच बहुत कठिनाई से आता है। उन्हें रात्रि में एक बड़ा गिलास गर्म दूध में 50-60 ग्राम देशी गुड़ मिलाकार पी लेने से चमत्कारी लाभ होता है। यह कोष्ठबद्ध रोगी के लिए लिक्विड थेरापी का कार्य करता है।
कब्ज का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को अपने पेट पर 20 से 25 मिनट तक मिट्टी की या कपड़े की पट्टी करनी चाहिए। यह क्रिया प्रतिदिन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है। इसके बाद रोगी व्यक्ति को कटिस्नान करना चाहिए तथा एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ़ करना चाहिए।
कब्ज दूर करने के लिए सुबह सूर्य निकलने से पहले उठकर खुली हवा में प्रतिदिन टहलना चाहिए। इससे शरीर स्फूर्तिदायक और तरोताजा रहता है और कब्ज आदि से भी बचाता है।
कब्ज को दूर करने के लिए रात को सोते समय एक बर्तन में पानी रख दें और सुबह सूर्य निकलने से पहले उठकर उस पानी को 2-4 गिलास पी लें। फिर टहलने के बाद शौच जाने से शौच खुलकर आती है और कब्ज दूर होता है। कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को रात के समय में तांबे के बर्तन में पानी को रखकर सुबह के समय में पीने से शौच खुलकर आती है और कब्ज नहीं बनती है। आँतों में खुश्की न हो इसके लिए रोगी को आहार के अतिरिक्त 3 – 4 लीटर जल प्रतिदिन लेना चाहिए।
कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को शाम के समय में हरे रंग की बोतल का सूर्यतप्त पानी पीना चाहिए। इसके बाद ईसबगोल की भूसी ली जा सकती है। लेकिन इसमें कोई खाद्य पदार्थ नहीं होना चाहिए।

कब्ज दूर करने की चिकित्सा

कब्ज को दूर करने के लिए विभिन्न नियमों का पालन करना चाहिए तथा कब्ज को दूर करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा चिकित्सा करनी चाहिए। कब्ज को दूर करने के लिए व्यक्ति को सबसे पहले ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इसके लिए प्राकृतिक चिकित्सा का प्रयोग करना चाहिए। इससे शारीरिक शक्ति बनी रहता है और कब्ज जल्दी दूर होता है। साथ ही प्राकृतिक चिकित्सा का शरीर पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता।
शास्त्रों में कहा गया है – मरणं बिन्दुपातेनजीवनं बिन्दु धारणत्। अर्थात अधिक वीर्यस्खलन से शरीर की ऊर्जा शक्ति, तेज, ओजस धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं। इससे सभी स्नायुओं में कमज़ोरी और चिड़चिड़ापन उत्पन्न होता है। वीर्यस्खलन से पाचनक्रिया ख़राब होती है और जठराग्नि मन्द पड़ जाती है, जिससे भोजन ठीक से पच नहीं पाता और अपचा हुआ पदार्थ मल के रूप में आतों में ही सड़ता रहता है। आतों में मल सड़ने से पेट में गैस पैदा होती है और ख़ून दूषित होता है। अत: अपने आप पर संयम रखे बिना उपचार से कोई लाभ नहीं हो

व्यायाम द्वारा चिकित्सा

कब्ज दूर करने के लिए व्यायाम करना भी लाभकारी होता है। व्यायाम से पेट की क्रिया सुधरती है और कब्ज दूर होता है। व्यायाम के लिए पहले पीठ के बल लेट जाएं और दोनों पैरों को उठाकर शरीर के समकोण तक लाकर धीरे-धीरे पुन: नीचे लाएं। इस तरह प्रतिदिन व्यायाम करने से आंत और पेट की स्नायुक्रिया ठीक होती है और कब्ज आदि रोग दूर होते हैं।

यौगिक क्रिया के द्वारा रोग की चिकित्सा

कब्ज को खत्म करने के लिए प्रतिदिन योगक्रिया का अभ्यास करना चाहिए। इससे किसी भी कारण से उत्पन्न होने वाली कब्ज समाप्त हो जाता है।
षट्क्रिया (हठयोग क्रिया) – अग्निसार क्रिया या नौली व बस्तीक्रिया का अभ्यास करें।
पेट से सम्बंधित सभी कारणों तथा पेट की मांसपेशियों को शक्तिशाली बनाने के लिए यौगिक क्रिया –
आसन – सूर्य नमस्कार, पवन मुक्तासन, त्रिकोणासन, हलासन, ताड़ासन, कटि चक्रासन, मत्स्यासन और अर्ध मत्स्यासन का अभ्यास करें।
प्राणायाम – भस्त्रिका प्राणायाम के साथ कुंभक करें अर्थात सांस को रोकने का अभ्यास करें।
बंध – इस रोग में उडि्डया बन्ध व महाबंध का अभ्यास करें।
समय – इस योगिक क्रियाओ का अभ्यास प्रतिदिन 20 मिनट तक करें।
प्रेक्षा – प्राणायाम व बंध के बाद दीर्घ श्वास प्रेक्षा का अभ्यास करें।
अनुप्रेक्षा (मन की भावना) – सांस क्रिया करते हुए मन में विचार करें- “मेरे अन्दर का कब्ज रोग दूर हो गया है और मैं स्वस्थ हो रहा हूं। मेरा मन और मस्तिष्क शुद्ध हो गया है।” मन में ऐसी भावना करनी चाहिए।

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