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त्वचा रोग में घरेलू उपचार व आयुर्वेदिक उपाय


त्वचा के किसी भाग के असामान्य अवस्था को चर्मरोग (dermatosis) कहते हैं। त्वचा शरीर का सनसे बडा तंत्र है। यह सीधे बाहरी वातावरण के सम्पर्क में होता है। इसके अतिरिक्त बहुत से अन्य तन्त्रों या अंगों के रोग (जैसे बाबासीर) भी त्वचा के माध्यम से ही अभिव्यक्त होते हैं। (या अपने लक्षण दिखाते हैं)

त्वचा शरीर का सबसे विस्तृत अंग है साथ ही यह वह अंग है जो बाह्य जगत् के संपर्क (contact) में रहता है। यही कारण है कि इसे अनेक वस्तुओं से हानि पहुँचती है। इस हानि का प्रभाव शरीर के अंतरिक अवयवों पर नहीं पड़ता। त्वचा के रोग विभिन्न प्रकार के होते हैं। त्वचा सरलता से देखी जा सकती है। इस कारण इसके रोग, चाहे चोट से हों अथवा संक्रमण (infection) से हों, रोगी का ध्यान अपनी ओर तुरंत आकर्षित कर लेते हैं।


1 जन्मजात कारण

2 भौतिक कारण
3 रसायनों का प्रभाव
4 अस्वच्छता एवं संसर्गजनित रोग
5 त्वचा पर रहने वाले जीवाणु (बैक्टिरिया)
जन्मजात कारण 

त्वचा संबंधी कुछ रोग जन्म से होते हैं, जिनका कारण त्वचा का कुविकास (maldevelopment) है। इस प्रकार के रोग जन्म के कुछ दिन पश्चात् ही माता एवं अन्य लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं, उदाहरणार्थ लाल उठे हुए धब्बे (nevus), जिनमें रक्त झलकता है। ये शरीर के किसी अंग पर निकल सकते हैं। ये चिह्न (scar) तीन चार वर्ष की आयु में अपने आप मिट जाते हैं। इनकी किसी विशेष चिकित्सक से चिकित्सा करानी चाहिए, जिससे कोई खराब, उभरा हुआ चिह्न न रह जाए।

भौतिक कारण

त्वचा पर भौतिक कारणों (physcial causes) से भी कुछ रोग होते हैं, जैसे किसी वस्तु के त्वचा पर दबाव तथा रंग, गरमी, सरदी एवं एक्सरे (x-rays) के प्रभाव के कारण उत्पन्न रोग। त्वचा पर कठोर दबाव के कारण ठेस पड़ जाती है जिसमें दबाव के कारण पीड़ा होती है। कभी कभी ऐसा भी देखा गया है कि निरंतर दबाव पड़ने पर त्वचा पतली पड़ जाती है, जैसे पोतों में आँत उतरना। इसकी रोकथाम के लिये कमानी पहनते हैं।


अधिक भीगने पर त्वचा सिकुड़ती है और छूटने लगती है। इस तरह की त्वचा पर साबुन का बुरा प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार की त्वचा धोबी, घर में काम काज करनेवाले नौकर होटल के रसोइए तथा बरतन साफ करनेवालों की होती है। हाथ पैर की त्वचा के साथ साथ उँगलियों और नाखून पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।

रसायनों का प्रभाव

त्वचा पर रासायनिक पदार्थों, जैसे क्षार तथा अम्ल आदि, का बुरा प्रभाव पड़ता है। भारत संप्रति औद्योगीकरण की ओर अग्रसर हो रहा है, अतएव अनेक प्रकार के रासायनिक पदार्थों का प्रयोग अनिवार्य है। ऐसी स्थिति में त्वचा के बहुत से रोग त्वचा पर इन रसायनकों के बुरा प्रभाव डालने के कारण दृष्टिगोचर होंगे।


अस्वच्छता एवं संसर्गजनित रोग

देश में अधिकांशत: त्वचा के वे रोग देखे जाते हैं, जो शरीर की पूर्ण सफाई न करने, निर्धनता, निरंतर स्नान न करने तथा रोगी पशुओं की त्वचा के स्पर्श से हो जाते हैं। इस प्रकार के रोग छूत के रोग होते हैं और एक दूसरे के संसर्ग से लग जाते हैं। ऐसे रोगों में अधिकांश रूप से खाज (scabies), जूँ(pediculosis) और दाद (ringworm) इत्यादि होते हैं। लोग यह सोचते हैं कि इन रोगों के जीवाणुओं को मारने के लिये तीव्र से तीव्र औषधियों का प्रयोग करना चाहिए। यह विचार निर्मूल एवं गलत है। ऐसा करने से त्वचा को बहुत हानि पहुँचती है। लोगों को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि वे सब रोग, जिनमें खुजली एक सामान्य उपसर्ग है, भिन्न भिन्न कारणों से होते हैं। खाज के लिये गंधक का मरहम बहुत लाभदायक है। रोग के पूरे निदान के लिये चिकित्सक की आवश्यकता पड़ती है। गंधक के मरहम को शरीर पर रात में लगाकर सोना चाहिए। मरहम तीन बार लगाना काफी होगा।
सिर की जूँ से छुटकारा पाने के लिये सिर की सफाई करना तथा बालों को कटवाना चाहिए और डी.डी.टी. (D.D.T.) या अन्य औषधियों का प्रयोग चिकित्सक की संमति के अनुसार करें। खुजली तथा जूँ से छुटकारा पाने के लिये अन्य चीजों से उतना लाभ नहीं होता जितना उपर्युक्त औषधियों से।
दाद पर ऐसा मरहम न लगाना चाहिए, जो त्वचा को हानि पहुँचाए। पसीना आनेवाले स्थानों पर यह रोग अधिक देखा जाता है। इस कारण ऐसे स्थानों को पाउडर द्वारा सूखा रखना चाहिए। साथ ही मरहम और पाउडर का प्रयोग दाद के ठीक होने के पश्चात् भी कुछ समय तक निरंतर करते रहना चाहिए। इस रोग के लिये अभी एक ऐसी औषधि निकली है जो टिकिया (tablet) के रूप में खाई जाती है। यह रोग के लिये अत्यंत लाभदायक है।

ये रोग कभी कभी पकनेवाली खुजली के रूप में होते हैं और हमारी त्वचा पर जो जीवाणु मित्र के समान रहते हैं, शत्रु हो जाते हैं। इन जीवाणुओं को मारने के लिये पेनिसिलिन (penicillin) और सल्फा (sulpha) मरहम, जैसे सिबाज़ोल (cibazol), हानिकारक हैं।

त्वचा रोग में आयुर्वेदिक व घरेलू उपचार
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  • नहाते समय नीम के पत्तों को पानी के साथ गरम कर के, फिर उस पानी को नहाने के पानी के साथ मिला कर नहाने से चर्म रोग से मुक्ति मिलती है।
  • नीम की कोपलों (नए हरे पत्ते) को सुबह खाली पेट खाने से भी त्वचा रोग दूर हो जाते हैं।
  • त्वचा के घाव ठीक करने के लिए नीम के पत्तों का रस निकाल कर घाव पर लगा कर उस पर पट्टी बांध लेने से घाव मिट जाते हैं। (पट्टी समय समय पर बदलते रहना चाहिए)।
  • मूली के पत्तों का रस त्वचा पर लगाने से किसी भी प्रकार के त्वचा रोग में राहत हो जाती है।
  • प्रति दिन तिल और मूली खाने से त्वचा के भीतर जमा हुआ पानी सूख जाता है, और सूजन खत्म खत्म हो जाती है।
  • मूली का गंधकीय तत्व त्वचा रोगों से मुक्ति दिलाता है।
  • मूली में क्लोरीन और सोडियम तत्व होते है, यह दोनों तत्व पेट में मल जमने नहीं देते हैं और इस कारण गैस या अपचा नहीं होता है।
  • मूली में मेग्नेशियम की मात्रा भी मौजूद होती है, यह तत्व पाचन क्रिया नियमन में सहायक होता है। जब पेट साफ होगा तो चमड़ी के रोग होने की नौबत ही नहीं होगी।
  • हर रोज़ मूली खाने से चहरे पर हुए दाग, धब्बे, झाईयां, और मुहासे ठीक हो जाते हैं।
  • त्वचा रोग में सेब के रस को लगाने से उसमें राहत मिलती है। प्रति दिन एक या दो सेब खाने से चर्म रोग दूर हो जाते हैं। त्वचा का तैलीयपन दूर करने के लिए एक सेब को अच्छी तरह से पीस कर उसका लेप पूरे चहरे पर लगा कर दस मिनट के बाद चहरे को हल्के गरम पानी से धो लेने पर “तैलीय त्वचा” की परेशानी से मुक्ति मिलती है।
  • खाज और खुजली की समस्या में ताज़ा सुबह का गौमूत्र त्वचा पर लगाने से आराम मिलता है।
  • जहां भी फोड़े और फुंसी हुए हों, वहाँ पर लहसुन का रस लगाने से फौरन आराम मिल जाता है।
  • लहसुन और सूरजमुखी को एक साथ पीस कर पोटली बना कर गले की गांठ पर (कण्ठमाला की गील्टियों पर) बांध देने से लाभ मिलता है।
  • सरसों के तेल में लहसुन की कुछ कलीयों को डाल कर उसे गर्म कर के, (हल्का गर्म) उसे त्वचा पर लगाया जाए तो खुजली और खाज की समस्या दूर हो जाती है।
  • सूखी चमड़ी की शिकायत रहती हों तो सरसों के तैल में हल्दी मिश्रित कर के उससे त्वचा पर हल्की मालिश करने से त्वचा का सूखापन दूर हो जाता है।
  • हल्दी को पीस कर तिल के तैल में मिला कर उससे शरीर पर मालिश करने से चर्म रोग जड़ से खत्म होते हैं।
  • चेहरे के काले दाग और धब्बे दूर करने के लिए हल्दी की गांठों को शुद्ध जल में घिस कर, उस के लेप को, चेहरे पर लगाने से दाग-धब्बे दूर हो जाते हैं।
  • करेले के फल का रस पीने से शरीर का खून शुद्ध होता है। दिन में सुबह के समय बिना कुछ खाये खाली पेट एक ग्राम का चौथा भाग “करेले के फल का रस” पीने से त्वचा रोग दूर होते हैं।
  • दाद, खाज और खुजली जैसे रोग, दूर करने के लिए त्वचा पर करेले का रस लगाना चाहिए।
  • रुई के फाये से गाजर का रस थोड़ा थोड़ा कर के चहेरे और गरदन पर लगा कर उसके सूखने के बाद ठंडे पानी से चहेरे को धो लेने से स्किन साफ और चमकीली बन जाती है।
  • प्रति दिन सुबह एक कप गाजर का रस पीने से हर प्रकार के त्वचा रोग दूर होते हैं। सर्दियों में त्वचा सूखने की समस्या कई लोगों को होती है, गाजर में विटामिन A भरपूर मात्रा में होता है, इस लिए रोज़ गाजर खाने से त्वचा का सूखापन दूर होता है।
  • पालक और गाजर का रस समान मात्रा में मिला कर उसमें दो चम्मच शहद  मिला कर पीने से, सभी प्रकार के चर्म रोग नाश होते हैं।
  • गाजर का रस संक्रमण दूर करने वाला और किटाणु नाशक होता है, गाजर खून को भी साफ करता है, इस लिए रोज़ गाजर खाने वाले व्यक्ति को फोड़े फुंसी, मुहासे और अन्य चर्म रोग नहीं होते हैं।
  • काली मिट्टी में थोड़ा सा शहद मिला कर फोड़े और फुंसी वाली जगह पर लगाया जाए तो तुरंत राहत हो जाती है।
  • फुंसी पर असली (भेग रहित) शहद लगाने से फौरन राहत हो जाती है।
  • शहद में पानी मिला कर पीने से फोड़े, फुंसी, और हल्के दाग दूर हो जाते हैं।
  • सेंधा नमक, दूध, हरड़, चकबड़ और वन तुलसी को समान मात्रा में ले कर, कांजी के साथ मिला कर पीस लें। तैयार किए हुए इस चूर्ण को दाद, खाज और खुजली वाली जगहों पर लगा लेने से फौरन आराम मिल जाता है।
  • हरड़ और चकबड़ को कांजी के साथ कूट कर, तैयार किए हुए लेप को दाद पर लगाने से दाद फौरन मीट जाता है।
  • पीपल की छाल का चूर्ण लगा नें पर मवाद निकलने वाला फोड़ा ठीक हो जाता है। चार से पाँच पीपल की कोपलों को नित्य सुबह में खाने से एक्ज़िमा रोग दूर हो जाता है। (यह प्रयोग सात दिन तक लगातार करना चाहिए)

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